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* ’लघुता में सत्य की प्रतीति कराता है’ आदि-आदि।
सम्पादक द्वय ने ‘मनोगत’ शीर्षक भूमिका में हाइकु के सनातन सत्य ‘क्षण की अनुभूति’ को हाइकु विधा / छन्द में विशेष महत्त्व दिया गया है।
डॉ अर्पिता अग्रवाल के अनुसार रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु के हाइकु मानवीय और प्राकृतिक प्रेम के उच्छल प्रयास हैं. खिलखिलाए
पहाड़ी नदी जैसी
मेरी मुनिया’‘-(पृष्ठ-77)
तुतली बोली
आरती में किसी ने
मिसरी घोली--(पृष्ठ-77)
सचमुच कानों में चाँदी की घण्टियों की मधुर ध्वनि गूँज उठती है । हिमांशु जी के हाइकुओं में प्रकृति के नाना रूपों के मनोहर चित्रों के साथ मानवीय संवेदनाओं की निश्छल , पावन अनुगूँज भी है :
‘बीते बरसों/
अभी तक मन में
खिली सरसों’--(पृष्ठ-81)
‘दर्द था मेरा
मिले शब्द तुम्हारे
गीत बने थे’-(पृष्ठ-83)
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