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स्व॰ पिता शंकरलाल ने आज़ादी की लड़ाई में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और १०३ वर्ष की दीर्घायु प्राप्त की।
==शिक्षा-==एम०ए० अँग्रेज़ी साहित्य, एम० ए० इतिहास, बी० एड०, डिप्लोमा इन इन्टरनेशनल अंडरस्टैण्डिग,==प्रकाशन - ==ज़िन्दा कौमों का दस्तावेज़, हवा का रुख़ टेढ़ा है, मनुष्य-विरोधी समय में (तीनों कविता-संग्रह) तथा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख, कविताएँ एवं कहानी आदि ।==पुरस्कार - /यात्राएँ==भारतीय दलित साहित्य अकादमी का अम्बेदकर पुरस्कार । यात्राएँ -लंदन में आयोजित दलित राइटर कन्फ्रेंस में भाग लिया, कैलाश मानसरोवर यात्रा, तिब्बत (चीन),पिन्डारी ग्लेशियर यात्रा, रोहतांग-दर्रा यात्रा (मनाली), फ्राँस, जर्मनी, बेल्जियम, इटली (रोम, वेटकन सिटी, फ़लोरेंस, पीसा, वेनिस), स्विट्जरलैण्ड, इंग्लैण्ड आदि की।==संप्रति -==सेवानिवृत्त सहायक निदेशक सूचना, जनसंस्कृति मंच से जुड़े तथा सामाजिक, सांस्कृतिक व साहित्यिक गतिविधियों में सक्रिय एवं स्वतंत्र लेखन ।
==आत्म-कथ्य==
कविता शून्य के प्रति एक प्रार्थना और अनुपस्थिति के साथ एक संवाद है । वह यात्राओं पर निकल जाने का निमंत्रण और घर की ओर लौटने की तड़प है । कविता मनुष्य होने की बुनियादी शर्त है और कविता मनुष्य की मात्र भाषा है । कविता मनुष्य को जीने का तर्क और मक़सद देती है । कविता दिल से उठती है और दिल में उतरती हुई मस्तिष्क को झकझोर देती है । कविता ही एक उम्मीद है जो ज़िन्दा शब्द है । कविता रिश्तों की गर्मी, प्रेम की कोमलता और संवेदना की गहराई सँजोए हुए एक ज़िद की तरह मनुष्यता को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रही है । साहित्य की सामजिक भूमिका एवं लोकतांत्रिक चिन्तन के क्षेत्र में एक धारदार औज़ार की तरह काम करती है । [[पाब्लो नेरूदा ]] के शब्दों में,"कविता में अवतरित मनुष्य बोलता है कि वह अब भी बचा हुआ एक अन्तिम रहस्य है । कविता के केन्द्र में सदैव मनुष्य और मनुष्य और मनुष्यता ही रहती है, इसलिए वह मनुष्य से जुड़े सभी सवालों को सम्बोधित करती है । जनकवि [[धूमिल ]] के शब्दों में, "कविता भाषा में आदमी होने की तमीज़ है"।