भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ }} [[Catego...' के साथ नया पन्ना बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
}}
[[Category: चोका]]
<poem>
9-परछाई की पीड़ा
नहीं बैठना
सटकर दो पल
जलन -भरी
मेरी परछाई से
दे देगी पीड़ा
दो पल की छुअन
जग जाएँगी
सोई सभी कथाएँ
तड़पा देंगी
जीवन की व्यथाएँ !
वो स्वर्णकेशी
परियों का नर्तन
अश्रु-चुम्बन
भावमग्न होते ही
विदा हो जाना ,
फिर लौट न पाना
विवशता में
कुछ छटपटाना
गए पहर
चाँद का सुबकना
किसने जाना ?
छू न पाना हथेली
वो प्यार-भरी
सहमी और डरी
लिख न पाना-
‘जन्मों की अभिलाषा,
आग जगी मन की ।
-0-
10-मुझे बल देना
बाधाएँ खड़ीं
इम्तहान की घड़ी
बहुत बड़ी
रुकना नहीं सीखा
न झुकना ही
बढ़ते ही जाने को
जीवन माना
कोई तो साथ चले
अब क्या सोचें
अपनी गठरी ले
चल ही देना
भोर हुई मन की
कुछ न लेना
कुछ देना ही चाहो
होंगे बहुत
दो ही बोल तुम्हारे
जग को प्यारे
संग में चल देना
मुझे यूँ बल देना
-0-
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार= रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
}}
[[Category: चोका]]
<poem>
9-परछाई की पीड़ा
नहीं बैठना
सटकर दो पल
जलन -भरी
मेरी परछाई से
दे देगी पीड़ा
दो पल की छुअन
जग जाएँगी
सोई सभी कथाएँ
तड़पा देंगी
जीवन की व्यथाएँ !
वो स्वर्णकेशी
परियों का नर्तन
अश्रु-चुम्बन
भावमग्न होते ही
विदा हो जाना ,
फिर लौट न पाना
विवशता में
कुछ छटपटाना
गए पहर
चाँद का सुबकना
किसने जाना ?
छू न पाना हथेली
वो प्यार-भरी
सहमी और डरी
लिख न पाना-
‘जन्मों की अभिलाषा,
आग जगी मन की ।
-0-
10-मुझे बल देना
बाधाएँ खड़ीं
इम्तहान की घड़ी
बहुत बड़ी
रुकना नहीं सीखा
न झुकना ही
बढ़ते ही जाने को
जीवन माना
कोई तो साथ चले
अब क्या सोचें
अपनी गठरी ले
चल ही देना
भोर हुई मन की
कुछ न लेना
कुछ देना ही चाहो
होंगे बहुत
दो ही बोल तुम्हारे
जग को प्यारे
संग में चल देना
मुझे यूँ बल देना
-0-
</poem>