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युग की विभीषिका के नाम हुए हम
यूं ही बदनाम हुए हम !!
 
युग क्या पहचाने हम कलम फकीरों को
 
हम तो बदल देते युग की लकीरों को
 
धरती जब मांगती है विषपायी-कंठ तब
 
कभी शिव, मीरा, घनश्याम हुए हम
 
यूं ही बदनाम हुए हम !!
 
व्योम गुनगुनाया जब अंतस अकुलाया है
 
खड़ा हुआ कठघरे में खुद को भी पाया है
 
हम भी तो शोषक हैं
 
युग के उदघोषक हैं
 
घोड़ा हैं हम ही लगाम हुए हम
 
यूं ही बदनाम हुए हम !!
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