भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ !
 
बहुत लहलही आज हिंसा की फसलें
 
प्रदूषित हुई हैं धरा की हवाएँ।
 
चलो फिर अहिंसा के बिरवे उगाएँ।।