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दुँहु ओर से फाग मड़ी उमड़ी जहाँ जहँ श्री चढ़ि भीर ते भीर भिरी ।
कुच कँचुकी कोर छुये घरकै पजनेस फँदी फरकै ज्योँ चिरी ।
धधकी दै गुलाल की घूँघुरि मेँ धरी गोरी लला मुख मीढ़ी सिरी ।