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इस नदी को देखने लिए आप इस के एक दम क़रीब जाएं
घिस घिस कर कैसे कठोर हुए हैं और सुन्दर दोस्त , कितने ही रंग और बनक लिए पत्थर मैं यहाँ इस किनारे टीले पर चढ़ बैठा कि तुम्हे उधर सागर की तरफ बहता हुआ देखूँ....... मज़ा तो खूब आया लेकिन पीछे छूट गया !
उतरती रही होगी पिछली कितनी ही उठानों पर भुरभुरी पोशाकें इन की कि गुम सुम धूप खा रहीं उकड़ूँ ध्यान मगन और पसरी हुई कोई ठाठ से आज जब उतर चुका है पानी अलग अलग बिछे हुए पेड़ मवेशी कनस्तर डिब्बे लत्ते ढेले कंकर रेत .................1990
कि नदी के बाहर भी बह रही थीं कुछ नदियाँ शायद उन्हें क़रीब से देखने की ज़रूरत थी. दो
कुछ बच्चे माला माल हो गए अचानक उतरूँ खंगालते हुएतुझ मेंलदे फदेऔर तैर जाऊँ ताज़ा कटे कछार बिन भीगे अच्छे से ठोक ठुड़क कर छाँट लेते हर दिन पूरा एक खज़ाना तुम चुन लो अपना एक शंकर और मुट्ठी भर उस के गण मैं कोई बुद्ध देखता हूँ अपने लिए हो सके तो एकाध अनुगामी श्रमण और खेलेंगे भगवान भगवान दिन भर . पार !
ठूँस लें अपनी जेबों में आप भी ये जो बिखरी हुई हैं नैमतें शाम घिरने से पहले वरना वो जो नदी के बाहर है पानी के अलावा जिस की अपनी अलग ही एक हरारत है बहा ले जाएगा गुपचुप अपनी बिछाई हुई चीज़ें आने वाले किसी भी अँधेरे में आप आएं आप आएं और देख लें इस भरी पूरी नदी को यहाँ एक दम क़रीब आ कर . 20012004
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