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<poem>पूरी ज़िन्दगी में
क्या हो पाया मुझ से
सिवा एक संक्षिप्त मुस्कान के
खुलकर रो भी नहीं पाया।
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क्या हो पाया मुझ से
सिवा एक संक्षिप्त मुस्कान के
खुलकर रो भी नहीं पाया।
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