भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार;<br>पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार|<br>भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम;<br>बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम|<br>लक्ष्य क्या? उद्देश्य क्या? क्या अर्थ?<br>यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञानं का श्रम व्यर्थ|<br>यह मनुज, जो ज्ञान का आगार;<br>यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार |<br>छद्म इसकी कल्पना, पाखण्ड इसका ज्ञान;<br>यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान|<br><br>
- रामधारी सिंह 'दिनकर'
Anonymous user