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|संग्रह=हवाओं के साज़ पर/ 'अना' क़ासमी
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मिरी तबाही का वो ही इरादा रखते हैं
मुझी से जो शरफ-ए-इस्तिफ़ादा<ref> सम्मानपूर्वक लाभ उठाना</ref> रखते हैं

उठाइये कभी ज़हमत ग़रीबख़ाने की
मकान छोटा मगर दिल कुशादा<ref>बड़ा</ref> रखते हैं

दिलों में रखते हैं तूफ़ान हसरतों के वही
जो अपने हुस्न के तेवर को सादा रखते हैं

इधर भी कम नहीं रखते हैं दाग़ सीने पर
ये बात और, हुनर वो ज़ियादा रखते हैं

ये भागती हुई दुनिया ये सबक़तों<ref>प्रतिस्पर्धा</ref> का दौर
मगर हैं हम कि सफर पा-प्यादा<ref>पैदल</ref> रखते हैं

वही है इश्क़ मिरा मेरी हसरतों का बयाँ
वरक़ किताब का पहला जो सादा रखते हैं
<poem>
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