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<poem> लगन लागी ना अन्तर पट में।
दर्शन केहि विधी होय, राम बैठे है तेरे घट में।
तन की चोरी, मन की चोरी, करती रहती सुरता गोरी,
कहे शिवदीन व्यर्थ दिन खोये, आलस में भर भर कर सोये,
गुरू चरणों में चित्त न देवे, पडा रहे सठ खट में।
<poet/poem>