भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लौटना / भगवत रावत

28 bytes added, 18:37, 31 मई 2012
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>
दिन भर की थकान के बाद
 
घरों की तरफ़ लौटते हुए लोग
 भले लगते हैं।हैं ।
दिन भर की उड़ान के बाद
 घोंसलों की तरफ तरफ़ लौटतीं चिडियाँचिड़ियाँसुहानी लगती हैं।हैं ।
लेकिन जब
 
धर्म की तरफ़ लौटते हैं लोग
 
इतिहास की तरफ़ लौटते हैं लोग
 
तो वे ही
 
धर्म और इतिहास के
 हत्यारे बन जाते हैं।हैं ।
ऐसे समय में
 सबसे ज्यादा ज़्यादा दुखी और परेशान 
होते हैं सिर्फ़
 
घरों की तरफ़ लौटते हुए लोग
 
घोंसलों की तरफ़ लौटती हुई
 
चिडि़याँ।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits