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इक बार काँपते होठों से
तुम कह दो मेरी धरती हो
 
इक बार कहो ना मीत मेरे
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो
 
याद तुम्हारी छू जाती है
मन में अकुलाहट भर जाती है
इस पार हूँ मै उस पार खड़ी तुम
बीच में नदिया बहती है
इक बार कहो ना मीत मेरे
बात ज़बाँ की दिल कहता है
कहो ना कहो ये सब सुनता मौन की भाषा को गुनता हैचाँद बताता बता जाता है मुझको , तुम
सदियों से मुझ पर मरती हो