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Kavita Kosh से
इक बात चाहता हूँ सुनना
तुम जब-जब बाते करती हो
इक बार कहो ना मीत मेरे,
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो
इस दिल को कैसे समझाऊँ
लोगो को क्या मैं बतलाऊँ
है पूछ रहा ये जग सारा,
तुम मेरी क्या लगती हो
इक नए विश्व कि रचना कर दूँ
और अंतहीन आकाश बना दूँ
इक बार काँपते होठों से,
तुम कह दो मेरी धरती हो
बात ज़बाँ की दिल कहता है
मौन की भाषा को गुनता है
मुझसे चाँद बता जाता कहा करता है, तुमसदियों से तुम भी तो मुझ पर मरती हो
इक बार कहो ना मीत मेरे
तुम मुझसे मुहब्बत करती हो
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