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तुलसीदास / परिचय

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/* श्रीरामसे भेंट */
==श्रीरामसे भेंट==
काशीमें तुलसीदासजी काशी में तुलसीदास जी रामकथा कहने लगे। वहाँ उन्हें एक दिन एक [[प्रेत]] मिला, जिसने उन्हें [[हनुमान्‌जी]] हनुमान जी का पता बतलाया। [[हनुमान्‌जी]] हनुमान जी से मिलकर तुलसीदासजीने तुलसीदास जी ने उनसे [[राम|श्रीरघुनाथजी]] श्रीरघुनाथ जी का दर्शन करानेकी कराने की प्राथना की। हनुमान्‌जीने हनुमान ‌जी ने कहा, 'तुम्हे [[चित्रकूट]] में [[राम|रघुनाथजी]] रघुनाथ जी दर्शन होंगे।' इसपर तुलसीदासजी चित्रकूटकी तुलसीदास जी चित्रकूट की ओर चल पड़े।
चित्रकूट पहुँचकर रामघाटपर राम घाट पर उन्होंने अपना आसन जमाया। एक दिन वे [[प्रदक्षिणा]] करने निकले थे। मार्गमें मार्ग में उन्हें श्रीरामके श्रीराम के दर्शन हुए। उन्होंने देखा कि दो बड़े ही सुन्दर [[राजकुमार]] घोड़ोंपर घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिये जा रहे हैं। तुलसीदासजी तुलसीदास जी उन्हें देखकर मुग्ध हो गये, परंतु उन्हें पहचान न सके। पीछेसे [[हनुमान्‌जी]] पीछे से हनुमान ‌जी ने आकर उन्हें सारा भेद बताया तो वे बड़ा पश्चाताप करने लगे। हनुमान्‌जीने हनुमान जी ने उन्हें सात्वना दी और कहा प्रातःकाल फिर दर्शन होंगे।
संवत्‌ १६०७ की [[मौनी अमावस्या]] बुधवारके बुधवार के दिन उनके सामने भगवान्‌ [[राम|श्रीराम]] पुनः प्रकट हुए। उन्होंने बालकरूपमें तुलसीदासजीसे बालकरूप में तुलसीदास जी से कहा-बाबा! हमें चन्दन दो। हनुमान्‌जीने हनुमान ‌जी ने सोचा, वे इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोतेका तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा-<br>
'''चित्रकूट के घाट पर भयि संतन की भीर।''' <br>
'''तुलसीदास चंदन घिसें तिलक देत रघुबीर॥'''<br>
तुलसीदासजी तुलसीदास जी उस अद्भुत छविको छवि को निहारकर शरीरकी शरीर की सुधि भूल गये। भगवान्‌ने भगवान ‌ने अपने हाथसे हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदासजीके मस्तकपर तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्धान हो गये।
==संस्कृत में पद्य-रचना==