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Kavita Kosh से
मैंने दिया प्रेम तुम्हें वैसा, जैसा तुमने चाहा
बदन हमारे जल रहे थे, एक-दूजे को दाहा
पर घबराए हम पड़े हुए थे, कोई न कुछ कर पाया