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|रचनाकार=विनीत उत्पल
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<Poem>
वह सो रहा है सदियों से
ऐसा नहीं कि वह काफी थका हुआ है
ऐसा भी नहीं कि वह रात भर जगा है
ऐसा भी नहीं कि वह चिंता में डूबा है
उसके घर या दफ्तर में कलह भी नहीं हुआ है
वह सो रहा है सदियों से
रातभर करवट बदलने के बाद
राक्षसी भोजन करने से देह में शिथिलता आने पर
धन के लिए झूठ-फरेब करने के बाद
आधी दुनिया पर छींटाकशी करने के बाद
वह सो रहा है सदियों से
क्योंकि उनके मामले में तमाम बातें झूठी हैं
सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर पेश करना है आसान
क्योंकि उसे नींद आती है ‘सच का सामने’ करने के दौरान
और उसे नींद आती है कडुवा सच सुनने पर
वह सो रहा है सदियों से
क्योंकि वह पढ़ नहीं पाया
क्योंकि वह ऐसा मुरीद है कि बस ‘जी हां, जी हां’ करने के सिवाय
और तलुवे चाटने से हटकर नहीं कर सकता कोई सवाल
क्योंकि सुन नहीं सकता वह, जो वह है
आस्था पर विश्वास कर सकता लेकिन बहस नहीं
तो समय आ गया है
कुंभकर्णी नींद में सोने वालों को जगाने का
तथ्य व तर्क की कसौटी पर कसने का
अनपढ़ को पढ़ाने का
क्योंकि बेवकूफ ज्ञानी कभी किसी की कुछ नहीं सुन सकते।
<Poem>
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|रचनाकार=विनीत उत्पल
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<Poem>
वह सो रहा है सदियों से
ऐसा नहीं कि वह काफी थका हुआ है
ऐसा भी नहीं कि वह रात भर जगा है
ऐसा भी नहीं कि वह चिंता में डूबा है
उसके घर या दफ्तर में कलह भी नहीं हुआ है
वह सो रहा है सदियों से
रातभर करवट बदलने के बाद
राक्षसी भोजन करने से देह में शिथिलता आने पर
धन के लिए झूठ-फरेब करने के बाद
आधी दुनिया पर छींटाकशी करने के बाद
वह सो रहा है सदियों से
क्योंकि उनके मामले में तमाम बातें झूठी हैं
सच को झूठ और झूठ को सच बनाकर पेश करना है आसान
क्योंकि उसे नींद आती है ‘सच का सामने’ करने के दौरान
और उसे नींद आती है कडुवा सच सुनने पर
वह सो रहा है सदियों से
क्योंकि वह पढ़ नहीं पाया
क्योंकि वह ऐसा मुरीद है कि बस ‘जी हां, जी हां’ करने के सिवाय
और तलुवे चाटने से हटकर नहीं कर सकता कोई सवाल
क्योंकि सुन नहीं सकता वह, जो वह है
आस्था पर विश्वास कर सकता लेकिन बहस नहीं
तो समय आ गया है
कुंभकर्णी नींद में सोने वालों को जगाने का
तथ्य व तर्क की कसौटी पर कसने का
अनपढ़ को पढ़ाने का
क्योंकि बेवकूफ ज्ञानी कभी किसी की कुछ नहीं सुन सकते।
<Poem>