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दूरवासी मीत मेरे / अज्ञेय

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दूरवासी मीत मेरे!
पहुँच क्या तुझ तक सकेंगे काँपते ये गीत मेरे?
आज कारावास में उर तड़प उ_ा उठा है पिघल कर
बद्ध सब अरमान मेरे फूट निकले हैं उबल कर
याद तेरी को कुचलने के लिए जो थी बनायी-
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