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चिड़िया / मल्लिका मुखर्जी

838 bytes added, 07:56, 20 जुलाई 2012
छोटे-छोटे पंख फैलाना
देखते ही बनता !
 
एक दिन अचानक
तुम अपने परिवार के साथ
निकल पड़ती
उस घोंसले से,
कभी न लौटने के लिए !
अपने बच्चों को
आज़ाद कर देती तुम
आसमान की विशालता में !
अगले मौसम तक
मुझे इंतज़ार रहता
तुम्हारे लौटने का ।
अपने बच्चों के प्रति
इतना प्रेम और
इतनी अनासक्ति !
 
लौट कर आओ एक बार फिर
चिड़िया रानी !
हमारे मकानों को
घर बनाओ,
हमें जीवन का मर्म सिखाओ !
</Poem>
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