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{{KKRachna
|रचनाकार=गीत चतुर्वेदी
|संग्रह=आलाप में गिरह / गीत चतुर्वेदी
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कभी दौड़ पड़े तो थकान नहीं
और कभी बैठे-बैठे ही टप् से गिर पड़ेढह गएमुक़ाबले में इस तरह उतरे कि उसे अगले को दया आ गई
और उसने ख़ुद को ख़ारिज कर लिया
थोड़ी-सी हँसी चुराई