भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|संग्रह=चिन्ता / अज्ञेय
}}
{{KKCatKavitaKKCatGeet}}
<Poem>
आओ, एक खेल खेलें!
मैं आदिम पुरुष बनूँगा, तुम पहली मानव-वधुका।
पहला पातक अपना ही हो परिणय, यौवन-मधु का!
दृढ़ नाग-पाश में बाँधे पाताल-लोक ले जावे!
निज जीवन का सुख ले लें!
आओ, एक खेल खेलें!
मत मिथ्या व्रीडा से तुम नत करो दीप्त मुख अपना-
मिथ्या भय की कम्पन में मत उलझाओ सुख-सपना!
उन के आज्ञापन की हम मुँहजोही ही न करेंगे!
हम उत्पीडऩ क्यों झेलें?
आओ, एक खेल खेलें!
हम उन के सही खिलौने- क्यों अपना खेल भुलावें?
कन्दरा किसी में अपनी हम क्रीडास्थली बनावें!