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|रचनाकार=संजय कुमार कुंदन|संग्रह=एक लड़का मिलने आता है / संजय कुमार कुंदन
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<poem>
एक लड़का मिलने आता है
उस लड़की से कुछ शाम ढले
कुछ ऐसी कशिश1 इस शाम में हैइस फितरत2 के इनआम3 में हैये हल्का अँधेरा, हल्की ख़लिशजिसमें जज़्बों का राज़ पलेएक लड़का मिलने आता है<br>उस लड़की से कुछ शाम ढले<br><br>
कुछ ऐसी कशिश1 इस शाम वो बन्द कमरे में है<br>होते हैंइस फितरत2 के इनआम3 में वो हँसते हैं या रोते हैंउनकी बातों की शाहिद4 है<br>ये हल्का अँधेरा, हल्की ख़लिश<br>जिसमें जज़्बों का राज़ पले<br>जो एक लरज़ती5 शम्अ जलेएक लड़का मिलने आता है<br>उस लड़की से कुछ शाम ढले<br><br>
वो बन्द कमरे में होते हैं<br>बातें करते खो जाता हैवो हँसते हैं या रोते हैं<br>लड़का ग़मगीं हो जाता हैउनकी बातों की शाहिद4 लड़की डरती है<br>मुस्तक़बिल6जो एक लरज़ती5 शम्अ जले<br>शायद गहरी इक चाल चलेएक लड़का मिलने आता है<br>उस लड़की से कुछ शाम ढले<br><br>
बातें करते खो जाता है<br>क़स्बे के शरीफ़ इन हल्क़ों में लड़का ग़मगीं हो जाता ग़ुस्सा है<br>मगर इन लोगों मेंइनके भी घर में लड़की डरती है मुस्तक़बिल6<br>शायद गहरी इक चाल क्यूँ इश्क़ का ये व्योपार चले<br>एक लड़का मिलने आता है<br>उस लड़की से कुछ शाम ढले<br><br>
क़स्बे के शरीफ़ इन हल्क़ों में <br>ग़ुस्सा है मगर इन लोगों में<br>इनके भी घर में लड़की है<br>क्यूँ इश्क़ का ये व्योपार चले<br>एक लड़का मिलने आता है<br>उस लड़की से कुछ शाम ढले<br><br> अब कैसे कहूँ इन दोनों से<br>एक प्यार में डूबे पगलों से<br>बस्ती से बाहर इश्क़ करें<br>बस्ती के दिल में खोट पले<br>एक लड़का मिलने आता है<br>उस लड़की से कुछ शाम ढले<br><br> जो कुछ भी है दुनिया का है<br>फिर दिल का क्यूँ ये धंधा है<br>क्यूँ सदियों से मिलते हैं दिल<br>दुनिया में जब-जब शाम ढले<br>क्यूँ लड़का मिलने आता है<br>उस लड़की से कुछ शाम ढले<br><br>
जो कुछ भी है दुनिया का है
फिर दिल का क्यूँ ये धंधा है
क्यूँ सदियों से मिलते हैं दिल
दुनिया में जब-जब शाम ढले
क्यूँ लड़का मिलने आता है
उस लड़की से कुछ शाम ढले
</poem>
1.आकर्षण, 2.प्रकृति, 3.पुरस्कार, 4.गवाह, 5.काँपती, 6.भविष्य।