भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
मिले सु तात, मात, बाँधव सब, कुसल-कुसल करि प्रस्न चलाई ।<br>
आसन देइ बहुत करी बिनती, सुत धोखै तब बुद्धि हिराई ॥<br>
सूरदास प्रभु कृपा करी अब, चितहिं धरै पुनि करी बड़ाई ॥8॥ <br><br>
माधव या लगि है जग जीतत ।<br>