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Kavita Kosh से
कुछ ने कहा है मतवाला<br>
पर कोलाहाल में गूँज रहा था बस<br>
निराला...निराला...निराला ।<br><br>'''2<br><br>वह निराला नहीं था तो<br>निराला जैसा क्यों<br>दिख रहा था<br>वह निराला नहीं था तो<br>कुहरे पर क्यों<br> लिख रहा था ।<br><br>'''3<br><br>धीरे-धीरे छँटी भीड़<br>अब वह था और दिशाएँ थीं<br>कुछ बांध रोड पर गाएँ थीं<br>जो बहिला थीं<br>काँजी हाउस की ओर<br> उन्हें हाँका जा चुका था<br>वे हड्डी थीं और चमड़ा थीं<br>उनकी रंभाहट से बिध कर<br>खड़ा रहा वह बेघर<br> फिर धीरे-धीरे चढ़ी रात<br>वह कृष्ण पाख की विकट रात<br>था दूर-दूर तक अंधियारा<br>अशरण था वह दुत्कारा ।<br>