भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
जहाँ रोता है निराला-सा वह दढ़ियल<br><br>
'''11.<br><br>
कुछ दिनों बाद वह बूढ़ा मुझे दिखा<br>
दारागंज में ठाकुर कमला सिंह के यहाँ<br>
ठठवारी करते<br>
भैंस का गोबर उठाते<br>
सानी-पानी करते<br>
रखवारी करते<br>
रोटी पर रख कर दाल-भात खाते<br>
झाड़ू लगाते<br>
अगले दिन वह दिखा<br>
हनुमान मन्दिर के बाहर<br>
हात पसारे दाँत चियारे<br>
अगले दिन वह मिला<br>
नेहरू का आनन्द भवन अगोरते हुए<br>
नोचते हुए घास<br>
अगले दिन दिखा<br>
पंत उद्यान में पंत से रोते दुखड़ा<br>
अगले दिन वह दिखा हिन्दी विभाग के आगे<br>
अपनी सही व्याख्या के लिए अनशन पर बैठे<br>
नारा लगाते<br>
ऎंठे अध्यापकों से लात खा कर भी डटा था वह<br>
पर अध्यापक उसे समझने के लिए<br>
नहीं थे तैयार...<br><br>
'''12<br><br>
हिन्दी विभाग से वह कहाँ गुम हुआ<br>
कह नहीं सकता<br>
पर बिना बताए रह भी नहीं सकता<br>
आख़िरी बार उसे देखा गया<br>
रसूलाबाद घाट पर चंद्रशेखर आज़ाद की<br>
चिता भूमि पर गुम-सुम बैठे<br>
उसके पास एक पोथी थी<br>
एक चटाई थी<br>
साहित्यकारों की संसद में नई<br>
पोस्ट आई थी<br>
नज़दीक में ही कई चिताएँ जल रही थीं<br>
पानी पर कई नावें चल रही थीं<br>
चल रहा था क्या उसके मन में<br>
कहना कठिन है<br>
यह समय किसी भी निराला के लिए<br>
दुर्दिन है ।<br><br>
'''13