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Kavita Kosh से
इस पर हम निछावर हैं।
जा रहे हैं छोड़ कर अपना सभी कुछ
छोड़ कर मिट्टी तलक अपने पसीने-ख़्ाून ख़ून से सींची
किन्तु फिर भी आस बाँधे
लुट गया सब कुछ तुम्हारा
छिन गयी वह भूमि जिस को
अगम जंगल से तुम्हारे पूर्वजों ने ख़्ाून ख़ून दे-दे कर उबारा था
किन्तु तुम तो मानते हो, गया जो कुछ जाय-