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|रचनाकार=वसीम बरेलवी
}}
[[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी हैजो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना ज़रूरी है
उसूलों पे जहाँ आँच आये टकराना ज़रूरी नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझायेकहाँ से बच के चलना है<br>जो ज़िन्दा हों तो फिर ज़िन्दा नज़र आना कहाँ जाना ज़रूरी है<br><br>
नई उम्रों की ख़ुदमुख़्तारियों को कौन समझाये<br>थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे कहाँ से बच के चलना है कहाँ सलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना ज़रूरी है<br><br>
थके हारे परिन्दे जब बसेरे के लिये लौटे <br>बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक नहीं पातासलीक़ामन्द शाख़ों का लचक जाना मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है<br><br>
बहुत बेबाक आँखों में त'अल्लुक़ टिक सलीक़ा ही नहीं पाता<br>शायद उसे महसूस करने कामुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है<br><br>
सलीक़ा ही नहीं शायद उसे महसूस करने का<br>जो कहता है ख़ुदा है तो नज़र आना ज़रूरी है<br><br> मेरे होंठों पे अपनी प्यास रख दो और फिर सोचो<br>कि इस के बाद भी दुनिया में कुछ पाना ज़रूरी है<br><br/poem>
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