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प्रथम किरण / अज्ञेय

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|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=बावरा अहेरी / अज्ञेय; सुनहरे शैवाल / अज्ञेय
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<Poem>
भोर कीप्रथम किरण:फीकी :फीकी।अनजानेजागी होयाद:किसी की--अपनी मीठी नीकी।
अपनीमीठी:नीकी !धीरे-धीरेउदितरवि काल्लाललाल-लाल: गोला
चौंक कहीं पर
छिपामुदितबन-पाखी:बनपाखी बोलादिन हैजब जय हैयह बहु-जन की :बहुजन की।
प्रणति, लाल रवि, ओ जन-जीवनलो यहमेरीसकल साधना:भावना तन की:, मन की-- वह बन-पाखीबनपाखी जाने गरिमा
महिमा
मेरे छोटेचेतन:छन की ! '''इलाहाबाद-दिल्ली (रेल में), 3 फरवरी, 1951'''
</poem>
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