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शिकवा / इक़बाल

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घर ये उजड़ा है कि तू रौनक-ए-महफ़िल न रहा ।
ऐ ख़ुश आं रूज़ के आइ व बशद-ए-नाजाई सद नाज़ आई ।बे हिजाज़ बा ना हिजाबाने सू-ए-महफ़िल-ए-माबाज़ मा बाज़ आई ।
बादाकश ग़ैर हैं, गुलशन में लब-ए-जू <ref>झरने के किनारे </ref> बैठे
अपने परवानों को फ़िर ज़ौक-ए-ख़ुदअफ़रोज़ी<ref>खुद को जलाने का मज़ा</ref> दे ।
बर्के दैरीना <ref>पुरानी बिज़ली</ref> को फ़रमान-ए-जिगर सोज़ी दे ।
क़ौम-ए-आवारा इनां ताब है फिर सू-ए-हिजाज़ ।
तू ज़रा छेड़ तो दे तश्ना मिज़राब-ए-साज ।
नगमें बेताब है हैं तारों से निकलने के लिए ।
तूर मुज्तर हैं उसी आग में जलने के लिए ।
मुश्किलें उम्मत-ए-मरदूम<ref>लोगों की उम्मत, इस्लाम</ref> की आसां कर दे ।
नूर-ए-बेमायां को अंदोश-ए-सुलेमां कर दे ।
इनके नायाब-ए-मुहब्बत को फ़िर अरज़ां कर दे
हिन्द के दैर नशीनों को मुसल्मान कर दे ।
जू-ए-ख़ून मीचकद अज़ हसरते देरीना दैरीना मा ।मीतपद नाला ब-नश्तर कदा-ए-सीना मा । <ref> फ़ारसी में लिखी पंक्ति का अर्थ है - ख़ून की धार हमारी पुरानी हसरतों से निकलती है, और छुरी सीने के हत्यागार से हमारे चीखने की आवाज़ आती है । (अपूर्ण अनुवाद है ।) </ref>
बू-ए-गुल ले गई बेरूह-ए-चमन राज़-ए-चमन ।
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