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शिकवा / इक़बाल

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''टिप्पणी: शिकवा इक़बाल की शायद सबसे चर्चित रचना है जिसमें उन्होंने इस्लाम के स्वर्णयुग को याद करते हुए ईश्वर से मुसलमानों की तात्कालिक हालत के बारे में शिकायत की है । यह 1906 में प्रकाशित हुई थी ।''
क्यूँ ज़ियांकार बनूँ, सूद फ़रामोश रहूँ
तूर मुज्तर हैं उसी आग में जलने के लिए ।
मुश्किलें उम्मत-ए-मरदूममरहूम<ref>हारे हुए लोगों की उम्मत, यहाँ पर अर्थ - इस्लाम</ref> की आसां कर दे ।नूरमूर-ए-बेमायां को अंदोश-ए-सुलेमां कर दे ।इनके जिन्स-ए-नायाब-ए-मुहब्बत <ref>ऐसे दुर्लभ प्रेमियों (यहाँ पर अर्थ मुस्लमानों से है)</ref> को फ़िर अरज़ां <ref>सुलभ, सस्ता</ref कर देहिन्द के दैर नशीनों <ref>पुराने देवियों की ख़िदमत करने वाले</ref> को मुसल्मान मुसल्मां कर दे ।
जू-ए-ख़ून मीचकद अज़ हसरते दैरीना मा ।
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