भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
इनकैं कहे कौन डहकावे, ऐसी कौन अनारी ।<br>
अपनौं दूध छाँड़ि को पीवै, खारे कूप कौ बारी ॥<br>
ऊधौ जाहु सबारैं ह्याँ तै, बेगि गहरु जनि लावहु ।<br>
मुख मागौ पैहौ सूरज प्रभु, साहुहिं आनि दिखावहु ॥17॥ <br><br>