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मैंने देखा एक बूँद / अज्ञेय

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{{KKRachna
|रचनाकार=अज्ञेय
|संग्रह=अरी ओ करुणा प्रभामय / अज्ञेय; सुनहरे शैवाल / अज्ञेय
}}
{{KKCatGeet}}
उछली सागर के झाग से
रँगी गई क्षण भर
ढलते सूरज की आग से ।से।
मुझको दीख गया :
हर आलोक-छुआ अपनापन
है उन्मोचन
नश्वरता के दाग से ! '''नयी दिल्ली, 5 मार्च, 1958'''
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