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गिरता रहा वादी-ए-पुरखार<ref>सूखी पत्तियों की वादी</ref> में मुसलसल<ref>लगातार</ref> लमहा
ज़र्द<ref>लालपीली</ref> होती गई है ये माज़ी-ए-वादी<ref>बीते समय की वादी</ref> फिर भी
मुन्तज़िर<ref>प्रतीक्षारत</ref> है नए रंग लिए, मिले कल लमहा