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|रचनाकार=घनानंद
}}
<poem>
जिन आँखिन रूप-चिन्हार भई ,
तिनको नित ही दहि जागनिहै .
हित-पीरसों पूरित जो हियरा ,
फिरि ताहि कहाँ कहु लागनिहै .
‘घनआनन्द’ प्यारे सुजान सुनौ,
जियराहि सदा दुख दागनि है .
सुख में मुख चंद बिना निरखे,
नखते सिख लौं बिख पागनि है .
</poem>
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|रचनाकार=घनानंद
}}
<poem>
जिन आँखिन रूप-चिन्हार भई ,
तिनको नित ही दहि जागनिहै .
हित-पीरसों पूरित जो हियरा ,
फिरि ताहि कहाँ कहु लागनिहै .
‘घनआनन्द’ प्यारे सुजान सुनौ,
जियराहि सदा दुख दागनि है .
सुख में मुख चंद बिना निरखे,
नखते सिख लौं बिख पागनि है .
</poem>