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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=सीता-वनवास / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
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प्रभो अच्छा पत्नीव्रत पाला !
धोबी के ही कहे प्रिया को निर्वासन दे डाला !

बजवा सत्य-न्याय का डंका
जिसके लिए विजय की लंका
उसी सती को करके शंका घर से तुरत निकला

'सोचा भी न तनिक यह मन में
क्या बीतेगी उस पर वन में !
चाँद बिना चाँदनी भुवन में पा सकती उजियाला !

'यदि लोकापवाद था गन्दा
न्याय सदा होता है अँधा
तो क्यों नहीं राज्य का फन्दा अपने सिर से टाला !'

प्रभो अच्छा पत्नीव्रत पाला !
धोबी के ही कहे प्रिया को निर्वासन दे डाला !
<poem>
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