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[[category: कविता]]
<poem>

इस जलते जीवन का प्रमाद
मैं किसे सौंप दूँ, प्राणों की, यह गहन विकलता, यह विषाद?

रानी तुम हो, यह मधु रजनी
पुलकित दिगंत, सुरभित अवनी
उर में बुनती माया-ठगिनी
जाने कैसी वेदना-वाद!

यह कैसा भीषण अन्धकार!
जड़-शून्य, गहनता, दुर्निवार
मधु-मिलन-प्रहर, सुकुमार, भार,
रुँध जाती साँसें निमिष बाद

यह विश्व विरह का महासिन्धु
हम पड़े सिसकते बिंदु-बिंदु
आकांक्षाओं का स्वर्ण-इंदु
दुख में भी भरता मधुर स्वाद

इस जलते जीवन का प्रमाद
मैं किसे सौंप दूँ, प्राणों की, यह गहन विकलता, यह विषाद?
<poem>
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