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[[category: कविता]]
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अयि अमर चेतने ज्योति किरण
आ मेरे मानस-दृग सम्मुख, मैं तुझे देख लूँ निरावरण
 
इस महाशून्य में उगी प्रथम
तू दिव्य ज्ञान सी उर्ध्व-क्रम ?
अणुओं की गति निष्पत्ति चरम
युग कर कंदुक से जन्म मरण
 
छवि मुखर प्रकृत की मधुशाला
भर भर लुढ़का मृण्मय प्याला
कब पहिना प्राणों की माला
मैंने तुझको कर लिया वरण
 
इस महा-भूति-मय मेला में
खो तुझे विदा की वेला में
भटकूँगा कहाँ अकेला मैं
गिर-श्रृंगों पर ढूँढ़ता शरण?
 
अयि अमर चेतने ज्योति किरण
आ मेरे मानस-दृग सम्मुख, मैं तुझे देख लूँ निरावरण
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