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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=सब कुछ कृष्णार्पणम् / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
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सब धरती की ही माया
जब जग ने ठुकराया मुझको, इसने गले लगाया

साँस साँस में सुरभि-समीरन
अँग-अँग में रसमय आलिंगन
मृण्मय यह चेतन की चेतन
जननी, सहचर, जाया

प्रात, गगन छूने को दौड़ा
साहस अतुल, बुद्धि-बल थोड़ा
साँझ, मुझे सबने जब छोड़ा
की इसने ही छाया

गत-आगत, जो नया-पुराना
रूप अमित इसका ही बाना
इससे चल, इसमें ही आना
क्या खोया ! क्या पाया !

सब धरती की ही माया
जब जग ने ठुकराया मुझको, इसने गले लगाया
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