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'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=भक्ति-गंग...' के साथ नया पन्ना बनाया
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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=भक्ति-गंगा / गुलाब खंडेलवाल
}}
[[Category:गीत]]
<poem>
जीवनस्वामी! मेरे अन्तर्यामी!
बना लिया क्यों मैंने तुझको निज रूचि का अनुगामी?
चिर-उदार रहकर क्यों तू यह पागलपन सहता है?
ढीठ चपलता पर मेरी बस मुस्काता रहता है
अंतहीन तृष्णा में जब मैं फिरता हूँ सुख-कामी
अपने आगे-आगे मैंने देखी तेरी छाया
कितने बाधा-विघ्नों से तू मुझे पार कर लाया
जब भी चरण डिगे तो बाँह पलटकर थामी
कैसे इस जड़ता को तूने इतना मान दिया है!
कहने के पहले ही मेरा आशय जान लिया है
मेरी हर बचपन की जिद पर भर दी तूने हामी
जीवनस्वामी! मेरे अन्तर्यामी!
बना लिया क्यों मैंने तुझको निज रूचि का अनुगामी?
<poem>
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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=भक्ति-गंगा / गुलाब खंडेलवाल
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[[Category:गीत]]
<poem>
जीवनस्वामी! मेरे अन्तर्यामी!
बना लिया क्यों मैंने तुझको निज रूचि का अनुगामी?
चिर-उदार रहकर क्यों तू यह पागलपन सहता है?
ढीठ चपलता पर मेरी बस मुस्काता रहता है
अंतहीन तृष्णा में जब मैं फिरता हूँ सुख-कामी
अपने आगे-आगे मैंने देखी तेरी छाया
कितने बाधा-विघ्नों से तू मुझे पार कर लाया
जब भी चरण डिगे तो बाँह पलटकर थामी
कैसे इस जड़ता को तूने इतना मान दिया है!
कहने के पहले ही मेरा आशय जान लिया है
मेरी हर बचपन की जिद पर भर दी तूने हामी
जीवनस्वामी! मेरे अन्तर्यामी!
बना लिया क्यों मैंने तुझको निज रूचि का अनुगामी?
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