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पगला मल्लाह / हरिवंशराय बच्चन

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डोंगा डोले.
आया डोला, उड़न खटोला, एक परी पर्दे से निकली पहने पंचरंग वीर. डोंगा डोले, नित गंग जमुन के तीर,
डोंगा डोले.
आँखे टक-टक, छाती धक-धक, कभी अचानक ही मिल जाता दिल का दामनगीर. डोंगा डोले, नित गंग जमुन के तीर,
डोंगा डोले.
नाव विराजी, केवट राजी, डांड छुई भर,बस आ पहुँची संगम पर की भीड़. डोंगा डोले, नित गंग जमुन के तीर,
डोंगा डोले.
मन मुस्काई, उतर नहाई, आगे पाँव न देना,रानी,पानी अगम-गंभीर. डोंगा डोले, नित गंग जमुन के तीर,
डोंगा डोले.
बात न मानी, होनी जानी , बहुत थहाई,हाथ न आई जादू की तस्वीर. डोंगा डोले, नित गंग जमुन के तीर,
डोंगा डोले.
इस तट,उस तट, पनघट, मरघट, बानी अटपट ; हाय,किसी ने कभी न जानी मांझी-मन की पीर. डोंगा डोले,
नित गंग जमुन के तीर,
डोंगा डोले.डोंगा डोले.डोंगा डोले....
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