भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चकित भँवरि रहि गयो / गँग

193 bytes added, 14:24, 22 सितम्बर 2012
|रचनाकार=गँग
}}
[[Category:पदछप्पय]]
<poeM>
चकित भँवरि रहि गयो, गम नहिं करत कमलवन.
हंस मानसर तज्यो चक्क चक्की न मिलै अति.
बहु सुंदरि पदिमिनी पुरुष न चहै, न करै रति.
खलभलित सेस कवि गँग गंग भन, अमित तेज रविरथ खस्यो.
खानान खान बैरम सुवन जबहिं क्रोध करि तंग कस्यो.
 
 
कहते हैं इस छप्पय पर 'रहीम खानखाना' ने 'गँग' को छत्तीस लाख रूपये दे डाले.
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader, प्रबंधक
35,131
edits