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|रचनाकार=‘शुजाअ’ खावर
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मेरा दिल हाथों में ले लो क्या तुम्हारा जायेगा
और मेरा ही समरक़न्दो-बुख़ारा जायेगा

तिश्नगी का एक-एक पहलू उभरा जायेगा
वस्ल की शब को भी फुरक़त में गुज़ारा जायेगा

कल ये मंसूबा बनाया हमने पी लेने के बाद
आसमानों को ज़मीनों पर उतरा जायेगा

डूबने से फ़ायदा भी होगा और नुक़सान भी
ज़हन से तूफ़ान हाथों से किनारा जायेगा

दर्द जायेगा तो कुछ-कुछ जायेगा पर देखना
चैन जब जायेगा तो सारा का सारा जायेगा

कुछ नहीं बोला तो मर जाएगा अन्दर से ‘शुजाअ’
और अगर बोला तो फिर बाहर से मारा जाएगा
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