[[Category:बांगला]]
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'''आमार दिन फुरालो व्याकुल बादल साँझे''' व्याकुल यह बादल की साँझदिन बीता मेरा, बीता ये दिनमेघों के बीच सघनमेघों के बीच ।बहता जल छलछल बन की है छायाहृदय के किनारे से आकर टकराया ।गगन गगन क्षण क्षण मेंबजता मृदंग कितना गम्भीर ।अनजाना दूर का मानुष वह कौनआया है पास आया है पास ।तिमिर तले नीरव वह खड़ा हुआ छुप छुपछाती से झूल रही माला है चुप-चुप,विरह व्यथा की माला,जिसमें है अमृतमय गोपन मिलन ।खोल रहा वह मन के द्वार ।चरण-ध्वनि उसकी ज्यों लगती है पहचानी ।उसकी इस सज्जा से मानी है हार ।
'''मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल'''
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 54 29 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)
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