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Kavita Kosh से
निज प्रेमी के काम कृष्ण
सब खुद ही करना चाहते थे।
यह आनन्द अद्भुत देख देख,
द्विज जाने यह जाने न मुझे |
करते हैं स्वागत धोके में,
प्रभु शायद पहचाने न मुझे |
भक्त की कल्पना सभी,
उर अंतर्यामी जान गये |
भक्त सुदामा के दिल की,
बाते सब ही पहचान गये |
बोले घनश्याम याद है कछु,
जब तुम हम दोनों पढ़ते थे |
थी कृपा गुरु की अपने पर,
पढ़ पढ़ के आगे बढ़ते थे |
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