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{{KKRachna
|रचनाकार=गोरधनसिंह शेखावत
|
}}
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<poem>
साँस रै सारै
मौत री काया
टूट'र बिखरगी
धरती सूं चिप्योड़ा पगां में
नफ़रत री गंध
धिमै-धिमै सलारगी
अणछक कांधां रै ऊपर
अतीत रो बोझ
नसां नै तोड़ण लाग्यो
समंधां री छीयाँ
भूत री दांई साम्है खड़ी होगी
झोळ चढ्या सबद
कूंतण लाग्या मिनखाजूण नै
मिनख काठ सो बणग्यो |
<poem>
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|रचनाकार=गोरधनसिंह शेखावत
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साँस रै सारै
मौत री काया
टूट'र बिखरगी
धरती सूं चिप्योड़ा पगां में
नफ़रत री गंध
धिमै-धिमै सलारगी
अणछक कांधां रै ऊपर
अतीत रो बोझ
नसां नै तोड़ण लाग्यो
समंधां री छीयाँ
भूत री दांई साम्है खड़ी होगी
झोळ चढ्या सबद
कूंतण लाग्या मिनखाजूण नै
मिनख काठ सो बणग्यो |
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