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Kavita Kosh से
धन सरकारी
मेरे हिस्से परमेसुर ।
शहर धुएँ के नाम चढ़ाओ
खीर-खांड ख़ैराती खाते
हमको गौमाता के खुर
सब छुट्टी के दिन साहब के
अजर-अमर श्रीमान उठा लें
हमको छोड़े क्षण भंगुर
पँच बुला कर करो फ़ैसला