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Kavita Kosh से
जिसे छोड़कर
गोमती नगर में उसने शानदार घर बनवा लिया था बाद में
एक दिन गोमती नगर वाले शानदार घर को भी छोड़कर
अपना साफ़-सुथरा आकर्षक शरीर लेकर
अच्छे साहित्य से पैदा हुए अच्छे समाज की बाते की थीं
हमने
लिफ़्ट पर चढ़कर गया वह
कूदकर नीचे आने के लिए
जब दूसरे वह ऊँचाई नहीं देते
जहाँ आप ख़ुद का घण्टाघर बनाए हुए होते हैं
तो ऊँचाई आपको ढकेल देती है
अपने को सबसे अलग समझने की
यह अलग ही कोई चोट है
जो ख़ुद पर ख़ुद ही मारनी पड़ती है राजेश की तरह
आत्महंता पद्धति को बहुत बार बहुत से कवियों ने
आजमाया है डिक्टेटर की तरह
जो उन्होंने जीवन को चोट पहुँचाने से पहले
लोक से अपने संवाद के लिए रची थी
ज़िन्दगी बहुत-सी चीज़ों के काम आती है
इसलिए आत्महत्या के भी काम आई एक दिन
जैसे अपनी मृत्यु ही सारी चीज़ों पर अंतिम पर्दा हो ।
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