भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
सोई होगी तुम निश्चय ही
अका<ref>वोल्गा की सहायक नदी</ref> जैसी
जल्दी क्या है मैं न् न जगाऊँगा तुमकोसर-दर्द न् न दूँगा तुरत-तार देकर के तुमको स्वपन न् न कोई भंग करूँगा
जैसा वे कहते हैं
नाव प्रेम की
जीवन-चट्टानों से टकरा कर चूर हो गई