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सोई होगी तुम निश्चय ही
अका<ref>वोल्गा की सहायक नदी</ref> जैसी
जल्दी क्या है मैं न् जगाऊँगा तुमकोसर-दर्द न् दूँगा तुरत-तार देकर के तुमको स्वपन न् कोई भंग करूँगा
जैसा वे कहते हैं
खत्म ख़त्म कहानी यहीं हो गई
नाव प्रेम की
जीवन-चट्टानों से टकरा कर चूर हो गई
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