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Kavita Kosh से
बडे़-बड़े पापियों को, त्यारे तुम दीना नाथ,
निपट दीन हीन मूर्ख, मैं हूं मतिमंद मूढ़,
शरण जानी दर्शन हित, शीघ्र प्रभु आइये।
बडी-बडी नदियां है, बडे-बडे पहार खडे,
लोभ रूप नदी बहत, काम को पहार जानो,
क्रोध रूप कूप घोर, कैसे बच पाउ मैं।
तुम्ही कहो कैसे फिर, तेरे को रिझांउ मैं।
कहता शिवदीन राम, राम नाम लेवूं कैसे,
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