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[[Category:कविता]]
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१.
अब न वो दर्द, न वो दिल, न वो दीवाने हैं
अब न वो साज, न वो सोज, न वो गाने हैं
अब न वो जाम, न वो मय, न वो पैमाने हैं
इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में
तुमको लग जाएंगी सदियां इसे भुलाने में
अब तो ऐसे लोग चले आते हैं मैखाने में
काँपती लौ, ये स्याही, ये धुआँ, ये काजल
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी
ज़िन्दगी गीत थी पर जिल्द बंधाने में कटी
अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
था लुटेरों का जहाँ गाँव, वहीं रात हुई
हर सुबह शाम की शरारत है
हर ख़ुशी अश्क़ की तिज़ारत है
ज़िन्दग़ी मौत की इबारत है
है प्यार से उसकी कोई पहचान नहीं
जाना है किधर उसका कोई ज्ञान नहीं
इस दौर का इन्सान है इन्सान नहीं
हंसी जिस ने खोजी वो धन ले के लौटा
ख़ुशी जिस ने खोजी चमन ले के लौटा
मगर प्यार को खोजने जो गया वो
न तन ले के लौटा न मन ले के लौटा